Sikandar History in Hindi इतिहास में बहुत सारे राजा हुए लेकिन एक ही ऐसा राजा है जिसके नाम के आगे दुनिया महान लिखती है। वो है अलेक्जेंडर (Alexander the Great) जिन्हें पूरी दुनिया सिकंदर (Sikandar) के नाम से जानती हैं। इतिहास में वे सबसे कुशल और यशस्वी सेनापति माने जाते हैं। इतिहास में सिकंदर के साहस और वीरता के किस्से आम है। इस दुनिया में कई महान लोग आए लेकिन सिकंदर सिर्फ एक ही था। सिकंदर का नाम न सिर्फ इतिहास के पन्नों पर जिंदा है बल्कि भारतीय सिनेमा में भी सिकंदर की महानता पर कई फिल्में बनी हैं और कई तरह के गाने भी लिखे गए हैं, और तो और सिकंदर के नाम पर एक कहावत भी है।
‘जो जीता वही सिकंदर’
इस आर्टिकल में हम आपको सिकंदर महान के बारे में और उनके जीवन से जुड़े सभी किस्सों के बारे में बताएंगे और यह भी बताएंगे की मरने से पहले उन्होंने अपनी हुकूमत पूरी दुनिया में कैसे चलाई। तो आइए जानते हैं सिकंदर महान के बारे में –
अलेक्जेंडर के बारेमें – Alexander The Great in Hindi | पूरा नाम (Full Name) | एलेक्ज़ेंडर तृतीय तथा एलेक्ज़ेंडर मेसेडोनियन |
| उपनाम (Nickname) | सिकंदर (Sikandar) |
| जन्म (Birth) | 20 जुलाई 356 ईसा पूर्व |
| जन्मस्थान (Birthplace) | पेला |
| पिता (Father Name) | फिलीप द्धितीय |
| माता (Mother Name) | ओलंपिया |
| विवाह (Spouse Name) | रुखसाना के साथ |
| घोड़े का नाम (Horse Name) | बुसेफेल्स (Bucephalus) |
| मृत्यु (Death) | 13 जून, 323 शताब्दी, बेबीलोन |
महान शासक सिकंदर 20 जुलाई, 356 ईसा पूर्व में प्राचीन नेपोलियन की राजधानी पेला में जन्मे थे। सिकंदर का पूरा नाम अलेक्जेंडर तृतीय और एलेक्जेंडर मेसडोनियन था। अलेक्जेंडर द ग्रेट या सिकंदर, फिलीप द्धितीय का बेटा था। जो कि मेक्डोनिया और ओलम्पिया के राजा थे। वहीं इनकी माता का नाम ओलिम्पिया थी। कहा जाता है कि वे एक जादूगरनी थी जिन्हें सांपो के बीच रहने का शौक था। वहीं अगर सिकंदर के भाई-बहनों की बात करें तो, उनकी एक बहन थी जिन्हें उनके परिवार में बेहद लाड़ किया जाता था।
वे बचपन से भी बेहद बुद्धिमान था लेकिन वह अपने उग्र स्वभाव के लिए जाना जाता था। दरअसल शुरुआती शिक्षा सिकंदर ने अपने रिश्तेदार दी स्टर्न लियोनीडास ऑफ एपिरुस से ली थी। सिकंदर के पिता फिलीप चाहते थे कि सिकंदर को पढ़ाई के साथ-साथ युद्ध विद्या का भी पूरा ज्ञान हो। इसलिए उन्होनें अपने एक अनुभवी और कुशल रिश्तेदार को सिकंदर के लिए नियुक्त किया था, जिससे सिकंदर ने गणित, घुड़सवारी, धनुर्विध्या ली थी।

वहीं जब सिकंदर 13 साल के हुए तो उनके लिए एक निजी शिक्षक एरिसटोटल (अरस्तु) की नियुक्ति की गई, जिन्हें भारत का अरस्तु भी कहा जाता है। वे एक प्रसिद्ध और महान दार्शनिक थे। दर्शनशास्त्र, गणित, विज्ञान और मनोविज्ञान में अरस्तू के विचारों का उल्लेख जरूर देखने को मिलता है। इसी से अरस्तू की योग्यता और उनके महत्व का अंदाजा लगाया जा सकता है। अरस्तू ने सिकंदर को करीब 3 सालों तक साहित्य की शिक्षा दी इसके साथ ही वाक्पटुता भी सिखाई। वहीं सिकंदर जैसे प्रतिभाशाली व्यक्ति को निखारने का काम भी अरस्तू ने ही किया। वहीं कई इतिहासकार तो मानते हैं कि उनके गुरु अरस्तू ने ही सिकंदर के मन में पूरी दुनिया को जीतने का सपना दिखाया था। क्योकि अरस्तू के मार्गदर्शन से भी सिकंदर योग्य होता चला गया था और उसमें दुनिया को जीतने का आत्म विश्वास भी बढ़ गया। सिकंदर भले ही बहुत महान और योग्य शासक था लेकिन अपने पिता की मौत के बाद सिकंदर ने राजगद्दी पाने के लिए सेना को इकट्ठा कर अपने सौतेले और चचेरे भाइयों की हत्या कर दी। और फिर वह मकदूनिया के राजसिंहासन पर काबिज हो गया था।


राजा पोरस के राज्य पर हक जमाने के मकसद से सिकंदर और राजा पोरस (King Porus) के बीच टकराव हुआ तो राजा पोरस ने बहादुरी के साथ सिकंदर के साथ लड़ाई की लेकिन काफी संघर्ष और कोशिशों के बाबजूद भी उसे हार का सामना करना पड़ा। वहीं इस युद्धा में सिकंदर की सेना को भी भारी नुकसान पहुंचा था।
जब सम्राट सिकंदर का राजा पोरस से युद्ध हुआ उसके बाद सिकंदर की सेना ने छोटे हिंदू गणराज्यों के साथ लड़ाई की। इसमें कठ गणराज्य के साथ हुई लड़ाई काफी बड़ी थी। आपको बता दें कि कठ जाति के लोग अपने साहस के लिए जानी जाती थी। वहीं कठों से युद्ध लड़ने के बाद सिकंदर की सेना व्यास नदी तक ही पहुंच पाई थी कि उसने आगे बढ़ने से मना कर दिया था।
दरअसल व्यास नदी के पार नंदवंशी के राजा के पास 20 हजार घुड़सवार सैनिक, 2 लाख पैदल सैनिक, 2 हजार 4 घोड़े वाले रथ और करीब 6 हजार हाथी थे। जिससे सिकंदर की सेना घबरा गई, और फिर नंदों से टक्कर होने का एहसास कर सिकंदर के सेना के हौसले पस्त पड़ गए।
वैसे तो सिकंदर पूरे भारत पर ही विजय पाना चाहता था लेकिन उसे अपनी सैनिकों की मर्जी की वजह से व्यास नदी से ही वापस लौटना पड़ा था। वहीं वापस जाते वक्त उसे मालव और क्षुद्रक आदि कई वीर हिंदू गणराज्यों से संगठित विरोध का सामना करना पड़ा था क्योंकि सिकंदर की योजना जाते-जाते भी इनके क्षेत्रों को जीतने की थी।
वहीं यह भी माना जाता है कि इन सभी गणराज्यों को एक साथ लाने में आचार्य चाणक्य का भी बहुत बड़ा योगदान था। इस सभी गणराज्यों ने सिकंदर को काफी नुकसान भी पहुंचाया था जिससे सिकंदर की सेना बेहद डर गई थी।
पूरी दुनिया पर शासन करने का सपना संजोने वाले सम्राट सिकंदर जब 323 ईसा पूर्व में बेबीलोन (Babylon) पहुंचे तो वे बुरी तरह बीमार पड़ गए, वे मलेरिया की चपेट में आ गए और फिर 33 साल की उम्र में जून 323 ईसा पूर्व में उन्होंने दम तोड़ दिया। इस तरह महान योद्धा का अंत हो गया।